महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ महायूति सरकार में शामिल दलों—बीजेपी, शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार गुट)—के बीच मतभेद एक बार फिर सुर्खियों में हैं। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि हाल ही में हुई एक अहम बैठक में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे द्वारा रखे गए कुछ प्रस्तावों को बीजेपी नेतृत्व ने स्वीकार नहीं किया, जिसके बाद गठबंधन के भीतर तनाव बढ़ने की अटकलें तेज हो गई हैं।
सूत्रों के मुताबिक, शिंदे ने कुछ मंत्रालयों में फेरबदल, प्रशासनिक नियुक्तियों और क्षेत्रीय विकास परियोजनाओं से जुड़ी सिफारिशें की थीं, जिन पर बीजेपी ने सहमति नहीं जताई। बताया जा रहा है कि बीजेपी का मानना है कि किसी भी बदलाव पर “सर्वसम्मति” से फैसला होना चाहिए, जबकि शिंदे खेमे का कहना है कि एक वर्ष से अधिक समय से लंबित मुद्दों को अब आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
इस पूरे घटनाक्रम ने विपक्ष को भी मौका दे दिया है। शिवसेना (उद्धव गुट) और कांग्रेस ने महायुति पर कटाक्ष करते हुए कहा कि सरकार “भीतर से कमजोर” है और निर्णय प्रक्रिया में एकजुटता की कमी साफ दिखाई देती है।
वहीं, महायुति के नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर किसी भी प्रकार के विवाद से इनकार किया है। उनका कहना है कि “सभी मुद्दे संवाद से हल हो जाएंगे” और सरकार स्थिर है।
हालांकि, बार-बार सामने आ रहे मतभेदों ने यह सवाल जरूर खड़ा कर दिया है कि क्या महायुति की अंदरूनी खाई वाकई बढ़ रही है या यह सिर्फ राजनीतिक दबाव बनाने की रणनीति है।

